शुक्रवार, 19 अक्टूबर 2012
शुक्रवार, 5 अक्टूबर 2012
चंद शेर गजल के
टूटे हुए दिल से आह भी न निकली।पत्थरों को तोड़ ये नदी किधर से निकली।।इसलिए कि तुम मेरे कुछ नहीं लगते,कुछ कलियाँ थी मोहब्बत की जो कभी न खिली।
चंद शेर गजल के
टूटे हुए दिल से आह भी न निकली।पत्थरों को तोड़ ये नदी किधर से निकली।।इसलिए कि तुम मेरे कुछ नहीं लगते,कुछ कलियाँ थी मोहब्बत की जो कभी न खिली।
रविवार, 23 सितंबर 2012
शुक्रवार, 14 सितंबर 2012
गुरुवार, 13 सितंबर 2012
बुधवार, 12 सितंबर 2012
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