शुक्रवार, 5 अक्टूबर 2012

बस प्यार का समंदर

न कामना के मंजर
न वासना के खंजर
तेरी आँख में मैं देखूँ
बस प्यार का समंदर

चंद शेर गजल के

टूटे हुए दिल से आह भी न निकली।पत्थरों को तोड़ ये नदी किधर से निकली।।इसलिए कि तुम मेरे कुछ नहीं लगते,कुछ कलियाँ थी मोहब्बत की जो कभी न खिली।

चंद शेर गजल के

टूटे हुए दिल से आह भी न निकली।पत्थरों को तोड़ ये नदी किधर से निकली।।इसलिए कि तुम मेरे कुछ नहीं लगते,कुछ कलियाँ थी मोहब्बत की जो कभी न खिली।

कविता

कविता

रविवार, 23 सितंबर 2012

गजल

kavya 10

गजल

kavya 9

गजल

kavya 7

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